Gyanvapi case: वाराणसी, 31 जनवरी: ज्ञानवापी मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला आया है, जिसमें व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार हिंदू पक्ष को प्राप्त हुआ है। वाराणसी की जिला अदालत ने बुधवार को हिंदू पक्ष को तहखाने में पूजा की इजाजत देने का आदेश जारी किया है। साथ ही, कोर्ट ने 7 दिन के अंदर प्रशासन को व्यवस्था करने का भी आदेश दिया है।

व्यास तहखाना: धार्मिक महत्व और संघर्ष

तहखाने का पूर्व इतिहास: व्यास तहखाना, जो ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर स्थित है, धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इसमें भगवान नंदी की मूर्ति के सामने स्थित है और 1993 तक यहां पूजा होती थी। नवंबर 1993 में पूजा पर रोक लगा दिया गया और इसके बाद पुजारियों को हटा दिया गया।

तहखाने की स्थिति आज: एएसआई सर्वे के दौरान तहखाने की साफ-सफाई की गई है और इसे काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के अधीन सौंपा गया है। तहखाने में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं।

कोर्ट का आदेश: हिंदू पक्ष की जीत

कोर्ट का फैसला: वाराणसी की जिला अदालत ने हिंदू पक्ष को व्यास तहखाने में पूजा की इजाजत दे दी है। इस आदेश के बाद हिंदू पक्ष को फिर से व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार प्राप्त हो गया है। कोर्ट ने हिंदू पक्ष की ओर से दी गई अन्य प्रार्थना पत्र पर भी व्यवस्था करने का आदेश 7 दिनों में दिया है।

कैविएट की तैयारी: हिंदू पक्ष के प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया, “हम इलाहाबाद हाईकोर्ट में कैविएट फाइल करेंगे। अगर कोर्ट इसकी सुनवाई करेगा तो हम वहां पर तैयार रहेंगे।”

राजनीतिक प्रतिक्रिया: हिंदू अधिकारों की सुरक्षा

गिरिराज सिंह का रुख: बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “हिंदुस्तान में हिंदू अपने ही अधिकारों से वंचित रहा हैं। माननीय न्यायालय का निर्णय स्वागत योग्य है। ज्ञानवापी मामले में वाराणसी कोर्ट का उत्तम फैसला, हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी में बेसमेंट में पूजा करने की अनुमति मिली।”

मुख्य राजनीतिक घटनाएं: इस फैसले ने राजनीतिक मंच पर भी असर डाला है, जहां विभिन्न दलों ने अपने-अपने रुख से इस पर प्रतिक्रिया दी है। राजनीतिक वातावरण में इस फैसले का महत्व बढ़ गया है और हिंदू समुदाय को अपने धार्मिक अधिकारों की सुरक्षा में यकीन हो गया है।

समाप्ति से पहले नई रूपरेखा

नई दिशा: इस नए चरम पर पहुंचने के बाद, ज्ञानवापी मामले में एक नई रूपरेखा उत्पन्न हुई है। हिंदू पक्ष को इस फैसले से सात दशकों बाद व्यास तहखाने में पूजा करने का अधिकार मिला है, जिससे समाज में सामंजस्य बढ़ा है। इसके साथ ही, राजनीतिक समीकरण में भी बदलाव दिखा जा रहा है और धार्मिक स्थलों के संरक्षण के प्रति समर्पित लोगों की आंदोलन भाषा में आत्मनिर्भरता का संकेत हो सकता है।

निष्कर्ष: ज्ञानवापी मामले का निष्कर्ष यह है कि यह एक बड़ा कदम है जो धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक स्थलों के प्रति समर्पण की दिशा में जागरूकता बढ़ाने की क्षमता रखता है। हिंदू पक्ष को इस फैसले से एक सकारात्मक संदेश मिलता है कि उनके धार्मिक अधिकारों की सुरक्षा और समर्थन में सरकार सचेत है। इस घड़ी में, यह एक महत्वपूर्ण समय है जब सामाजिक समर्थन के साथ धार्मिक स्थलों को बचाने के लिए समृद्धि और साहस का संकेत हो रहा है।

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